यह एक खनिज पत्थर है। अपनी रासायनिक संरचना में यह जिर्कोनियम का सिलिकेट रुप माना जाता है। इसकी उत्पति सायनाइट की षिलाओं के अन्दर होती है। यह एक पारदर्षी रत्न है। इसके अन्दर जाला धुंधलापन अथवा कट के निषान अवश्य पाये जाते है। लेकिन जितना साफ गोमेद होता है उतना उत्तम माना जाता है। गोमेद काफी सस्ता रत्न होता है। लेकिन अपने आकर्षक रंग व गुणों के कारण इसे नवरत्नों में सम्मानित स्थान प्राप्त है। गोमेद को राहू ग्रह का प्रतिनिधि रत्न माना जाता है।
इसलिए राहु ग्रह से संबंधित समस्त दोष तथा राहु दषा जनित समस्या दुष्प्रभाव गोमेद धारण करने से दूर हो जाते है। अंतः दैत्य ग्रह राहु की दशा को ठीक करने के लिए गोमेद धारण करना चाहिए। राहु ग्रह के प्रकोप से मानसिक तनाव बढ़ता है। छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आता है। कार्यकुषलता में निर्णायक कमी आती हे। निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है तथा योजनाएं असफल हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को गोमेद अवश्य धारण करना चाहिए। गोमेद धारण करने वाले के समक्ष शत्रु टिक नहीं पाता इससे शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है। जिन बच्चों का मन पढ़ाई में ना लगता हो तथा बहुत शरारतें करते हो। उन्हें गोमेद पहनाने से लाभ पहुंचता है। इसको धारण करने से सुख सम्पति में भी वृद्धि होती है। गोमेद रत्न यद्यपि कई रंगों में उपलब्ध होता हैं लेकिन ज्योतिषीय दृष्टिकोण से राहु रत्न गोमेद वही कहलाता है, जो गो-मूत्र के रंग वाला हो। यह अत्यधिक प्रचलित राहु रत्न स्थान तथा भाषा भेद के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। गोमेद को देवभाषा संस्कृत में तृणवर, तपोमणि, राहुरत्न, स्वर भानु, पीतरत्न, गोमेद, रत्नगोमेदक, हिन्दी में गोमेद, गुजराती में गोमूत्रजंबु, मराठी में गोमेदमणि, उर्दू, फारसी में जरकुनिया अथवा जारगुन, बंगाली में लोहितमणि, अरबी में हजारयमनि, बर्मा में गोमोक, चीनी में पीसी तथा आंग्ल भाषा में अगेट नाम से जाना जाता है।